Thursday, May 1, 2014

खेद

इस दौर में
दूसरो को सलाह देना
जितना आसान काम था
उतना ही मुश्किल था
बुरे दौर में किसी की मदद करना
इन्सान की दूसरे इंसान पर निर्भरता
उसके आत्मविश्वास को
नियंत्रित करने की युक्ति कही जा सकती है
या फिर उसको घुटनों के बल मजबूर देखने की ईश्वर की मानवीय चाह
ताकि उसका नियंता होना प्रमाणित हो सके
उम्मीदों के कारोबार में
घाटा उठाता एक निरुपाय व्यापारी
मनुष्य होने पर इस कदर
हताश हो सकता कि
वह मोक्ष को साधने में लग जाए
मोक्ष को आत्महत्या से बचने का रास्ता
बनाने वाले
सिद्ध कहलाए
और अकाल मौत के विकल्प पर
मुहर लगाने वाले कमजोर
मुश्किल ये है कि
जो न सिद्ध हो पाए
और न कमजोर
उनके निर्वासन के लिए धरती से इतर
किसी ग्रह पर बस्ती बसनी चाहिए थी
ताकि कम से कम
दुनियादारी के जालिम खेल पर
वो अपने समूह में ठहाका मार कर हंस पाते यदा-कदा
परन्तु
आज वो अपने हिस्से की त्रासदी
ढोते हुए समय से पहले बूढ़े हो गए
उनके बुढापे की एक बड़ी वजह
अपने जैसे लोगो से न मिल
पाना भी है
उनका एकांत उनकी दृष्टि भी ले गया
जिसकी रोशनी में वो
कुछ और वक्त के मारे
इंसान देख पाते
इस दौर में इस बात पर
किसी को खेद नही है
बस यही खेद की बात है।

© डॉ. अजीत 

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