जाना होगा एकदिन जहां से ये तय है
कई की नजर में हूँ कई की खबर में हूँ
मंजिल क्या है नही मुझे मालूम
रोज मगर लगता है कि सफर में हूँ
मौत मसाइल का हल नही होती
जितना जिन्दा हूँ उतना कब्र में हूँ
बदनामियों मेरे हिस्से की नजीर है
कल तेरी होगी मै इसी फ़िक्र में हूँ
लगता है काम फिर कुछ आ पड़ा है
आजकल मै दोस्तों के जिक्र में हूँ।
© डॉ.अजीत
कई की नजर में हूँ कई की खबर में हूँ
मंजिल क्या है नही मुझे मालूम
रोज मगर लगता है कि सफर में हूँ
मौत मसाइल का हल नही होती
जितना जिन्दा हूँ उतना कब्र में हूँ
बदनामियों मेरे हिस्से की नजीर है
कल तेरी होगी मै इसी फ़िक्र में हूँ
लगता है काम फिर कुछ आ पड़ा है
आजकल मै दोस्तों के जिक्र में हूँ।
© डॉ.अजीत
बढ़िया ।
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