Saturday, July 26, 2014

फुरसत

जो हो तुम्हें कभी थोड़ी सी फुरसत
देखों इन बोलती आँखों के सवाल
देखों इन उलझे बालों के दोराहें
देखों कैसे अचानक आपस में
मिल जाते है चौराहें
जो हो तुम्हें थोड़ी सी फुरसत
देखो हवा में तैरते अल्फाज़
देखो डर कर होती परवाज़
देखों हमारे बीच का पसरा सन्नाटा
देखों खुली आँखों में सपनों का चक्रव्यूह
देखों बिस्तर की सिलवट के पहाड़
देखों तकिए के अंदर बहती नदी
देखों शंकाओं के शुष्क जंगल
देखों सम्भावनाओं की ग्लेशियर
देखने के अलावा तुम सुन सकती हो
बेतरतीब धड़कनो के आलाप
खामोशी में बजते अधूरे राग
बैचेनी के झरनों का नाद
वजूद के टूटते शिलाखंडो का शोर
दर्द का सुगम संगीत
इतना देखने सुनने के बाद
सम्भव है तुम मौन हो जाओं
या फिर हंसना भूल जाओ
बिना मन के गीत गाओं
जो हो तुम्हें थोड़ी सी फुरसत
महसूस करो अपने इर्द-गिर्द पसरा एकांत
निर्वात में सांस लेता एक रिश्ता
जिसकी तुम बुनियाद रही हो
जो तुमसे जुड़ा रहा है गर्भनाल सा
तुम्हें याद दिलाना फ़र्ज समझता हूँ
क्योंकि
तुमने एक बार मजाक में कहा था
तुम्हारी याददाश्त कमजोर है
उसी कमजोरी के यहाँ गिरवी रखी
तुम्हें तुम्हारी फुरसत याद दिला रहा हूँ
दुनियादारी से जब जी भर जाए
फुरसत से याद करना थोड़ा-थोड़ा
किस्तों में
जो छूट गया था यूं ही
सरे राह चलते-चलते।

© अजीत


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