शिकस्त खुदा ने हमारी तरफ मोड़ दी
हमने शुरू की तो उसने पीनी छोड़ दी
साकी तेरी महफिल के अदब कैसे है
हम आएं तो दरबान ने बोतल तोड़ दी
जाम की जुम्बिश में अश्कों की नमी थी
फिर किसी ने आँखों से पीनी छोड़ दी
जायका क्यों न आता बुलंदी पर भला
मेहनतकश ने पसीनें की बूंदे निचोड़ दी
इस दौर के दोस्तों ने मसखरी सीख ली
मैंने मिलाया हाथ उसने कलाई मरोड़ दी
© अजीत
हमने शुरू की तो उसने पीनी छोड़ दी
साकी तेरी महफिल के अदब कैसे है
हम आएं तो दरबान ने बोतल तोड़ दी
जाम की जुम्बिश में अश्कों की नमी थी
फिर किसी ने आँखों से पीनी छोड़ दी
जायका क्यों न आता बुलंदी पर भला
मेहनतकश ने पसीनें की बूंदे निचोड़ दी
इस दौर के दोस्तों ने मसखरी सीख ली
मैंने मिलाया हाथ उसने कलाई मरोड़ दी
© अजीत
बहुत खूब ।
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