Tuesday, September 23, 2014

दुःख-सुख

दस दुःख दस सुख

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दुख तलाश लेता है
अपने जैसा दुख
जबकि सुख नही तलाश पाता
अपने जैसा सुख।
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दुख हमेशा होता है अनकहा
कहे गए दुख
सुख के जुडवा बच्चें बन जाते है
अक्सर।
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दुख का भार हमेशा
रीढ नही झुकाता
जैसे सुख हमेशा
गर्दन ऊंची नही करता।
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सुख की उम्मीद
दुख को सहने का हौसला है
बिना उम्मीद का दुख
सुख को चाट जाता है।
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दुख सुख की पीठ पर लदकर आता है
मगर टहलता अकेला है
प्रेम के दमे मे रची छाती पर
ऊकडूं बैठकर
आंखों के तालाब मे हाथ धोता है
जिसके छींटे तपते बदन पर
भाप बन उडते रहते है।
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तुम्हारा दुख
मेरे जैसा नही हो सकता
तुम्हारा सुख भी अलग होगा
मगर हमारे दुख की बातें
एक जैसी हो सकती है।
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दुख के आंसू
सुख के आंसू से ज्यादा तरल होते है
सुख के आंसू
भोगे हुए दुख
का ब्याज़ होते है।
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आंसू दुख या सुख के नही होते
आंसू होते है
मन की थकावट
का पसीना।
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उदासी का दुख
सुख की मुस्कान
से गहरा होता है
दुख सुख से
इकहरा होता है।
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माथे की दरारों में
दुख की सीलन पाई जाती है
और गालों पर
मुस्कान के डिम्पल।

© डॉ.अजीत

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