Monday, October 13, 2014

विदा

विदा के वक्त के भावुक वादें
गल जातें है वक्त के साथ
बचती है हासिल की गई समझदारी
कुछ शिकवें
चंद उल्हानें
विदा संधिकाल है उदासी का
एक यात्रा समाप्त दुसरी आरम्भ
हर शुरुआत एक अंत है
और हर अंत एक शुरुआत
इनके मध्यकाल में
पढ़ा जा सकता दर्शन,मनोविज्ञान या फिर
कविता
लिखे जा सकतें है व्यक्तिगत आलाप
कविता की शक्ल में
जीवन की धुरी पर घूमते अपनें
अक्षांश को देखने की जिद
सामाजिक बनाती है
जिसमें अपेक्षाओं की नमी में
उगते है कुछ रिश्तें
मिलने बिछड़ने के क्रम में
कथित रूप से जीना आ जाता है
अफ़सोस वो बेताल है जो लटका रहता
इस सीलन भरी दीवार पर
कुछ काश ! कुछ ग्लानि कुछ उपलब्धि की
की जुगलबंदी से
मांगते है उधार
थोड़ा सा साहस और थोड़ा सा दुस्साहस
और निकल पड़ते है
अवसाद के जंगल की तरफ
जूतों के फीते बांधते वक्त
याद आती है थोड़ी स्नेहिल छाँव
फिर देखते है कोरी धूप
और अनमने कोसते हुए दौड़ पड़ते है
उस गुफा की तरफ
जहां उपसंहार की रोशनी में
जिन्दगी मिलती है
आधी-अधूरी।
© डॉ. अजीत

1 comment:

  1. हर शुरुआत एक अंत है और हर अंत एक शुरुआत
    कितना सही लिखा है।

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