खुद की गहराई से घबरा जाता हूँ
कभी हलकी बातें भी कर जाता हूँ
दवा का असर कम यूं भी होता है
उससे आधा मर्ज़ छिपा जाता हूँ
नजरों के धोखे ही खाएं अभी तक
आदतन चश्मा लगाकर सो जाता हूँ
ये रोज़ के तमाशे ये रोज़ का मज़मा
कभी रंगे हाथ भी पकड़ा जाता हूँ
उनका शक का कारोबार यूं ही चले
दानिश्ता गुनाह करते चला जाता हूँ
© डॉ.अजीत
कभी हलकी बातें भी कर जाता हूँ
दवा का असर कम यूं भी होता है
उससे आधा मर्ज़ छिपा जाता हूँ
नजरों के धोखे ही खाएं अभी तक
आदतन चश्मा लगाकर सो जाता हूँ
ये रोज़ के तमाशे ये रोज़ का मज़मा
कभी रंगे हाथ भी पकड़ा जाता हूँ
उनका शक का कारोबार यूं ही चले
दानिश्ता गुनाह करते चला जाता हूँ
© डॉ.अजीत
दीपावली शुभ हो । सुंदर रचना ।
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