मृत्यु का चिन्तन
अवसाद के इतर
जीवन की कलात्मकता का
परिणाम भी हो सकता है
या फिर दर्शन पढ़ने की
एक जीवनपर्यन्त उपलब्धि
यात्रा की तैयारी का
जायज़ा लेने में हर्ज़ भी क्या है
सफर पर निकलने से पहले
आश्वस्ति समझदारी समझी जाती है
जीवन के टेढ़े मेढ़े रास्तों से
गुजर कर बिना थके
तरोताज़ा मंजिल तक पहूंचना
ज्ञान ध्यान का लक्ष्य हो सकता है
मृत्यु का दर्शन
जीवन के सरस प्रवाह से थोड़ा जटिल है
यदि तैयारी न हो तो
यह लग सकता है थोड़ा अप्रिय भी
परन्तु
मृत्यु एक खूबसूरत मंजिल है
जिसकी कल्पना के
अपने छिपे हुए रोमांच है
मृत्यु असामान्य या संदिग्ध कभी नही होती
मृत्यु बस मृत्यु होती है
साँसों के थमने या हृदय के स्पंदन रुकने से इतर
मृत्यु वरण है नए जीवन का
स्थगन है काल चिन्तन का
देह को देह बाहर निकल कर देखना
कितना विचित्र अनुभव होता होगा
कुछ कुछ स्वप्न जैसा
मृत्यु आत्महत्या से नही मिलती
मृत्युंजय मंत्र बाधक है साधक नही
मृत्यु के लिए
जीवन को झोंकने के अलावा कोई
विकल्प नही है
इसलिए जीवन की तरह
मृत्यु विचित्र संयोगों का सहारे ले
धीरे से हमारे कान में बुदबुदाती है
चलो ! बहुत सो लिए
अब जागने का समय है
और दुनिया इसे दे देती है
चिरनिद्रा का नाम
है ना बड़ा विचित्र विरोधाभास
दरअसल
मृत्यु जीवन का दूसरा पक्ष है
उतना ही जीवंत
जिससे जानने के लिए
बस मरना पड़ता है।
© डॉ. अजीत
अवसाद के इतर
जीवन की कलात्मकता का
परिणाम भी हो सकता है
या फिर दर्शन पढ़ने की
एक जीवनपर्यन्त उपलब्धि
यात्रा की तैयारी का
जायज़ा लेने में हर्ज़ भी क्या है
सफर पर निकलने से पहले
आश्वस्ति समझदारी समझी जाती है
जीवन के टेढ़े मेढ़े रास्तों से
गुजर कर बिना थके
तरोताज़ा मंजिल तक पहूंचना
ज्ञान ध्यान का लक्ष्य हो सकता है
मृत्यु का दर्शन
जीवन के सरस प्रवाह से थोड़ा जटिल है
यदि तैयारी न हो तो
यह लग सकता है थोड़ा अप्रिय भी
परन्तु
मृत्यु एक खूबसूरत मंजिल है
जिसकी कल्पना के
अपने छिपे हुए रोमांच है
मृत्यु असामान्य या संदिग्ध कभी नही होती
मृत्यु बस मृत्यु होती है
साँसों के थमने या हृदय के स्पंदन रुकने से इतर
मृत्यु वरण है नए जीवन का
स्थगन है काल चिन्तन का
देह को देह बाहर निकल कर देखना
कितना विचित्र अनुभव होता होगा
कुछ कुछ स्वप्न जैसा
मृत्यु आत्महत्या से नही मिलती
मृत्युंजय मंत्र बाधक है साधक नही
मृत्यु के लिए
जीवन को झोंकने के अलावा कोई
विकल्प नही है
इसलिए जीवन की तरह
मृत्यु विचित्र संयोगों का सहारे ले
धीरे से हमारे कान में बुदबुदाती है
चलो ! बहुत सो लिए
अब जागने का समय है
और दुनिया इसे दे देती है
चिरनिद्रा का नाम
है ना बड़ा विचित्र विरोधाभास
दरअसल
मृत्यु जीवन का दूसरा पक्ष है
उतना ही जीवंत
जिससे जानने के लिए
बस मरना पड़ता है।
© डॉ. अजीत
उम्दा !
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