Monday, December 1, 2014

लेनदेन

दस लेन-देन...
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देना चाहता हूँ तुम्हें
ख्वाबों की कतरन
एक मुट्ठी प्रेम
और थोड़ी उदासी
ताकि खुशी का मतलब
तुम मुझसे समझ सको।
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देना चाहता हूँ तुम्हें
नूतन सम्बंधों की प्रमेय
जहां सिद्ध करने के लिए
समीकरण या सूत्र की नही
विश्वास की
आवश्यकता हो।
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देना चाहता हूँ तुम्हें
चंद अधूरे ख्याल
जिन्हें तुम मुक्कमल करों
अपने अधूरेपन से।
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देना चाहता हूँ तुम्हें
अपनी पलकों का विस्तार
अपनी आँखें मूँद
तुम देख सको
मेरे आवारा ख्याल।
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देना चाहता हूँ तुम्हें
एक निमन्त्रण
तलाशी लो
जेब में सूखते ख़्वाबों की
बेफिक्री से देखूँ
तुम्हें उनका उपचार करते हुए।
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देना चाहता हूँ तुम्हें
हस्तरेखाओं का मानचित्र
ताकि अपने स्पर्श से
साफ़ कर सको
उस पर ज़मी
वक्त की गर्द और नमी को।
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देना चाहता हूँ तुम्हें
कुछ आधे लिखे खत
उन पर खुद का पता लिखों
और सुरक्षित कर लो खुद को
उनकी लिखावट के बीच।
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देना चाहता हूँ तुम्हें
अन्तस् का पता
जहां आ सको
तुम निर्बाध
नंगे पाँव।
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देना चाहता हूँ तुम्हें
वह सबकुछ
जो फिलहाल
मेरे पास भी नही है
जिंदादिली का
इससे बड़ा प्रमाण
नही है मेरे पास।
***
देना चाहता हूँ तुम्हें
धड़कनों को गिनने का काम
शर्ट के बटन से उलझते
तुम्हारे कान
दिल के शास्त्रीय संगीत के साथ
सुन सकें खुद का नाम।


© डॉ. अजीत

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