Tuesday, December 16, 2014

ख़्वाब

यादों के बरक्स
महकतें है लम्हें
कुछ पुरकशिस
अहसास रिसते है
आहिस्ता आहिस्ता
स्पर्शों की महक
कपूर की डली बन
उड़ने लगती है
बहकती ही साँसे
नशे की तरह
देह की पीठ पर बैठ
मन करता है बातें
सिमटने लगता है वजूद
धड़कनो का बढ़ना
नब्ज़ का धीमा होना
तुम्हारी यादों के हवाले से
मन के नाद को सुनना
जहां तुम समाधिस्थ
उच्चारित करती हो
मेरा नाम
भोर के मंत्र की माफिक
काया के पुल पर
साँसों का विनिमय
कभी निशब्द
कभी बुदबुदाता
कभी मौन
तुम्हारी यादों के
बैरंग खत
लौट आते है
हर इतवार
जिन्हें चुपके चुपके
पढ़कर
कर देता हूँ
ख्वाबो के हवाले
ख़्वाब तुमसें मिलनें की
ब्रह्माण्ड की सबसे
सुरक्षित जगह है।

©डॉ.अजीत

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