Wednesday, December 3, 2014

कहा सुनी

'दस कहा-सुनी'
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मैंने कहा
थोड़ा उलझ गया हूँ
सुलझा दो
उसने कहा
तुम उलझे हुए ही
अच्छे लगते हो
ये उस पल की
एक मात्र सुलझी हुई बात थी।
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मैंने कहा
इतनी चुप क्यों हो
उसने कहा
तुम्हारे असर में हूँ
उसके बाद
देर तक हंसते रहें हम दोनों।
***
मैंने कहा
ऐसे कब तक चलेगा
उसने कहा
जब तक
डर को वक्त से नापना
नही छोड़ देते तुम।
***
मैंने कहा
तुम्हारी हंसी उधार चाहिए
वो बोली
मुस्कान ही दे सकती हूँ
हंसी तो खुद उधार लाती हूँ
तुम्हारे लिए।
***
मैंने कहा
चलों चलते है
उसके बाद
मंजिल पर जाकर उसने पूछा
अब किधर चलना है
ये मासूमियत यादगार थी।
***
मैंने कहा
क्या योजना है
भविष्य की
वो बोली
मै कुछ और हूँ तुम्हारी
प्रेमिका नही।
***
मैंने कहा
प्यार अधूरा ही रहता है अक्सर
वो हंसते हुए बोली
पूरा करके
खत्म नही करना है मुझे।
***
मैंने कहा
बिन मेरे रह सकोगी
उसने उदास होकर कहा
बिलकुल
समझदारी में
तुमसे कम नही हूँ मैं।
***
मैंने कहा
बिछड़ना शाश्वत है
वो बोली
जानती हूँ  मिलने से पहले से
कोई नई बात कहो
दर्शन से इतर
थोड़ी रूमानी।
***
मैंने कहा
अच्छा लगता है
तुम्हारा साथ
उसनें कहा
यही एक समान बात है हमारी
बाकि सब तो
मतलब के भरम है।

© डॉ. अजीत

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