Friday, December 5, 2014

रात

खो जाता हूँ रोज रात
सुबह तुम्हारी ध्वनि
कान में कहती है
खोना नही जीना है
खोना मेरी नियति है
और जगाना तुम्हारा प्रारब्ध
हमारा मिलना कहा जाएगा
ब्रह्माण्ड का षडयंत्र
महज बोलने से रात्रि
शुभ नही हो जाती
मेरे कान रोज़
दिल और दिमाग को
भड़काते है
तुम्हारी शुभकामनाओं के खिलाफ।

© डॉ. अजीत 

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