Saturday, December 13, 2014

बारिश

बारिश और तुम
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अनजान शहर
बेमौसमी बारिश
सर्दी का मौसम
एक साथ इतने षडयंत्र
देखकर डर जाता हूँ
कभी खुद को याद करता हूँ
कभी तुम्हें
ईश्वर इस बात पर नाराज़ है।
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बाहर बारिश का शोर है
एक शोर अंदर है
दोनों शोर मिलकर
रचते है विचित्र आलाप
जिसमें शास्त्रीयता तलाशता हूँ मैं।
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बारिश आसमां से
बगावत कर रही है
कुछ बूंदे मांगती है पनाह
इनकार में
मै सुबक पड़ता हूँ
तुम्हें याद करके।
***
टिप टिप पड़ती बूंदे
बेघर है
बह रही है ढलान के साथ
यह देख
सूख जाते है आंसू
पलकों की हदों में।
***
दरवाजें बंद है
और खिड़कियाँ भी
कुछ बूंदे
एक झोंका
आता है देखने
सोया कि जाग रहा हूँ मैं।
***
बिस्तर पर
बैचैनियों की सिलवटें है
और ठंड की नमी
एक तकिये का एकांत
चिंतित करता है
करवट लेकर आश्वासन ओढ़ता हूँ।
***
धड़कनें दौड़ती है
कम ज्यादा
बाहर पानी है
गीले पैर
लौट आती है
दिल का तापमान
शून्य से नीचे चला जाता है।
***
बारिश इसलिए भी
खराब लगती है
ये ख्वाहिशों को
मरने नही देती
और उनका मरना
जीने की अनिवार्य शर्त है।
***
बादल खुद नही आ सकता
धरती से मिलनें
तो भेज देता है
खुद के आंसू
बारिश की शक्ल में
ये ठंड दरअसल
बादल के नम दिल की
ठंडक है।
***
और तुम
बारिश होने पर खुश हो
तुम्हारी खुशी
कभी कभी
कितनी भारी गुजरती है
मुझ पर
अंदाज़ा भी है तुम्हें।

© डॉ. अजीत

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