Friday, January 23, 2015

उम्मीद

उम्मीद
तुम्हें मेरे अंदर
जिन्दा रखती है
स्वप्न की शक्ल में
एक ऐसा स्वप्न
जिसे देखता रहता हूँ
खुली आंख भी
उम्मीद का झूठ
बंद आँख का स्वप्न है।
***
तुम्हारे जीवन में
जीरो वॉट के बल्ब जैसा था
मेरा होना
उपयोगी की हद तक
अनुपयोगी।
***
तुम जीवन में
पर्यायवाची की तरह मिलें
मेरी संज्ञाए
विशेषण न पा सकी
शायद
समय के व्याकरण में
कोई मानक त्रुटि थी।
***
तुम्हारे सत्संग में
जान पाया
जीवन का शाश्वस्त सच
हर अस्थाई और खोने वाली चीज़
सबसे प्रिय होती है
जैसे तुम्हारा प्रेम।
***
तुम्हारे लिए प्रेम का विस्तार
एक अनुभव था
मेरे लिए जीवन
दो समानांतर यात्राएं
समाप्त होनी थी
एकांत के टापू पर।
***
तुम्हारी आँखों में
पढ़ लिया था मैंने
समय का कौतुहल
तुम्हारा सिमटना
उसी का षडयन्त्र था
थोड़ा ज्ञात थोड़ा अज्ञात।
***
जीवन की अन्य
प्राथमिकताओं के समक्ष
सबसे छोटा था प्रेम
इसलिए तुम्हें
नजर तब आया
जब उपलब्धि के शिखर पर
नितांत अकेली थी तुम।
***
तलाशता हूँ तुम्हें
अधूरे शब्दों में
छोटी छोटी शिकायतों में
तुम्हारा पता नही मिलता
मिलता है
कतरों में अपनें हिस्से का सच
तुम्हारा सच लापता है
और मेरा झूठ गुमशुदा।
***
© डॉ. अजीत

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