Friday, February 13, 2015

आशीर्वाद

बत्तीस-तैंतीस साल की उम्र में
जब एक ठीक ठाक सामाजिक परिचय होना चाहिए
पर्स में रखा विजिटिंग कार्ड का वजन
आपके वजन को कुछ पौंड बढ़ाता हुआ हो
घर के बाहर टंगी हो
नाम और पद की एक कलात्मक तख्ती
जिसके सहारे
परिजनों के सामूहिक गौरव का
विषय भी होना हो आपको
ठीक उस वक्त यदि आप
प्रेम की खोज में निकल आते है
लगभग दस साल आगे
तो आपको
बुद्ध समझे जाने की शून्य सम्भावना है
इस यात्रा को हद दर्जे की
आसामान्य जिद करार दिया जा सकता है
उम्र के लिहाज़ से प्रत्येक दशक की होती है
अपनी सीमाएं अपने अभिमान
खुद से लगभग दस साल बड़ी प्रेमिका के साथ
प्रेम करना
विचित्र नही गरिमापूर्ण है
दर्शन कहता है ऐसा
इसके जोखिम और मांग एकदम अलग किस्म की होती है
दरअसल उम्र एक मनोवैज्ञानिक भरम है
जो तय करता है हमारे दायरें
दायरों से बाहर का प्रेम
मांगता है किस्म किस्म के प्रतिदान
मसलन आपकी प्रेमिका आपसे मांग सकती है
प्रेम पर एक शोधपरक वैधानिक स्पष्टीकरण
या फिर पूछ सकती है अपने हमउम्र लोगों में दिलचस्पी न होने की वजह
सवाल आपके पुरुषार्थ से लेकर जीन्स की आनुवांशिकी तक पर भी उठ सकता है
सलाह यह मिल सकती है कि
तुम्हें मिलना चाहिए किसी मनोवैज्ञानिक से
यथाशीघ्र
यदि इन सबके बावजूद
बचा लेते हो अपना प्रेम
नही खोते सबंधो की न्यूनतम गरिमा
आहत हृदय को समझाना नही पड़ता हो
दूर क्षितिज़ की तरह देख सको मन का डूबना और निकलना
साँसों के स्पंदन में  पिरो सको उसका नाम
बिना नजर के चश्में की मदद से
तब कहा जा सकता है
तुम प्रेम में हो गए हो सिद्ध
यह बात देर सबेर उसको भी समझ आनी ही है
इसलिए इन्तजार करों
होकर समाधिस्थ
ये वेलेंटाइन डे तो आता है हर साल
इस पर दे सकते हो
आशीर्वाद दो नव युगलों को
प्रेम के अभिनव विस्तार का
जिसकी सिद्ध पात्रता रखते हो तुम।

© डॉ. अजीत

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