Wednesday, March 18, 2015

खत

नींद एक बेपते की चिठ्ठी है
जो आती है कभी कभी
मेरे दर पर
नही पता कौन लिखता है
ऐसी लिखावट में खत कि
पता आते आते मिट जाता है
ख्वाब एक बूढ़ा डाकिया है
जिसे मनीआर्डर के साथ लिखे दो शब्द
पढ़ने की आदत है
कोरा लिफाफा देख
डाकिए पर मुझे सन्देह होता है
और डाकिया मुझे
सही इंसान समझने से इंकार करता है
थमा मेरे हाथ में लिफाफा
वो लौट जाता है अक्सर
यह बड़बड़ाता हुआ
'कम से कम पता तो
पूरा दिया करों
मिलनें-जुलनें वालों को'।

© डॉ. अजीत

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