Wednesday, March 4, 2015

चाहत

नही चाहता था
तुम्हें आदत में तब्दील होते देखना
नही चाहता था आदत का
लत में तब्दील होते देखना
नही चाहता था
तुम्हें जिंदगी का अहम हिस्सा बनाना
बावजूद इतने नही चाहने के
हुआ वही सब
जो नही चाहता था
अब चाहता हूँ
समन्दर की तरह इन्तजार
ताकि सूखते सूखते भी
तुम मुझ तक पहूँच ही जाओं
नदी की तरह
तब तक मैं खारा ही रहूंगा
मेरी बातों का
बुरा मत मानना
अब तुमसे मिलकर ही खत्म होगी
मेरी
प्यास
तल्खी
इन्तजार और खारापन
जब मेरा अस्तित्व एक इंच बढ़ जाएगा
तब समझ लेना
मुझमें आख़िरी
बूँद सहित समा गई हो तुम।

© डॉ. अजीत 

No comments:

Post a Comment