Thursday, April 2, 2015

खफा

बात बेहद छोटी थी मगर बड़ी हो गई
जरा सी गलती से जिंदगी खफा हो गई

मिन्नतें बेअसर रही सारी कशिस खो गई
सफर तन्हा रहा मंजिल ओझल हो गई

आँखों में रहें किसी कच्चे ख़्वाब की तरह
नींद पकी भी न थी अचानक सुबह हो गई

गलतफ़हमियों के जब से सिलसिलें निकलें
फांसलो में तब से गजब की सुलह हो गई

मुन्तजिर थी आँखें धड़कनें थी बेआस
पलकों पर आंसूओं की दोपहर हो गई

© डॉ. अजीत 

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