Wednesday, May 27, 2015

दूरी

मेरे तुम्हारे बीच में
महज फांसला नही है
कुछ ग्राम नम हवा भी है
हवा को विज्ञान कैसे तौलता है
नही जानता हूँ
मगर इतना जानता हूँ
हमारे बीच में
कुछ ऐसी महीन चीज़ जरूर है
जो हमें मिलनें नही देगी कभी।
***
देह का आकार
आकृति से बढ़कर नही होता
मन का कोई आकार ही नही होता
देह और मन के अलावा भी
कुछ अज्ञात है
जिसका अनावरण अभी शेष है
यही अज्ञात
हमें मिलनें नही देगा कभी।
***
क्यों न ऐसा करें
मिलाकर देखें
अपनी अपनी रेखाएं
ये समानांतर दिखती जरूर है
मगर है नही
शायद बन जाए कोई
मानचित्र
तुम खो जाओ इससे बेहतर है
इसकी मदद से
तुम्हारा निकल जाना।
***
तमाम किन्तु परन्तु के बावजूद
बहुत कुछ बच गया है
अनसुलझा
स्थगित करना ही पड़ेगा
मंजिल का कौतुहल
सफर आसान होता जाता है
और तुम मुश्किल।

© डॉ. अजीत

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