Wednesday, July 22, 2015

अंतिम

अंतिम पगडंडी
ठीक उसी रास्ते पर खत्म होती है
जहां दोराहा चौराहें से मिलता है
अंतिम कदम उतना ही भारी होता है
जितना पहला दुस्साहस
अंतिम बात कभी अंतिम नही रह पाती
वो छोड़ देती है हमेशा सम्भावना
एक नई बात की
अंतिम जो भी दिखता है
वो दरअसल अंतिम नही होता
वो होता है प्रथम का विलोम
ठीक निकट का विरोधाभास
सत्य का ऐच्छिक संस्करण
अंतिम अकेलेपन को समझते हुए
हुआ जा सकता है सिद्ध
जीवन और मृत्यु के बीच फंसी
हर बात अंतिम नही होती
ठीक जैसे
अंतिम नही होता इच्छा का मर जाना
अंतिम होना एक किस्म की सांत्वना है
यात्रा की समाप्ति या शुरुवात नही
यात्रा का मध्यांतर है अंतिम होना।

© डॉ. अजित

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