Tuesday, September 8, 2015

सम्वाद

एक बोझिल
बातचीत में
जितनी दफा
तुमनें लबों पर ज़बां फेरी
बस उतनी ही बार लगा

मेरी बातों में थी थोड़ी बहुत गुणवत्ता।
***
तुम्हारी अनुपस्थिति में
एक फूल खिला देखा
बस देख ही पाया
उसे छूने का साहस नही था मेरे पास
तुम्हारी अनुपस्थिति में।
***
अस्तित्व मेरे और
मेरी छाया के मध्य खड़ा था
निरुत्तर
प्रश्न एक तरफा थे
उत्तर का कोई मार्ग नही था

मैं हंस सकता था
बिना आँख के, थोड़ा प्रकाश थोड़ा अँधेरे में।
***
मैंने माफी मांगी
उसे विनम्रता में कमजोरी नजर आई
मैंने क्रोध किया
उसे इसमें भी मेरी कमजोरी नजर आई
मैं मुस्कुराया
उसे यह कूटनीतिक लगी
मैं हंसा
उसे यह नकली लगी
मैं जब चुप हो गया
उसे लगा मौन में हूँ मैं
किसी साधना के निमित्त।
© डॉ.अजित

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