Sunday, October 18, 2015

दफ्तरी प्रेम

किसी पुरानी फाइल में
बसी नमी सा था मेरा प्रेम
जिसकी गोद में
हाशिए पर दर्ज थी
टिप्पणियाँ संस्तुस्तियाँ अग्रसारण
और अस्वीकृतियाँ
मेरा अस्तित्व बचा था
एक अनुपयोगी दस्तावेज़ की शक्ल में
जिसे इन्तजार था
अवशिष्ट निस्तारण की एक
आधिकारिक निविदा का
मन के सरकारी दफ्तर में
एक निर्जन कोने में पड़े करना था
मुझे एक उपयुक्त समय का इन्तजार
ताकि अनिच्छाओं के टैग से निकाल
कर दिया जाए मुझे
आग और हवा के हवाले।
***
एक परिपक्व प्रेम सम्बन्ध में
मेरे हिस्से आई थी
कुछ सीएल कुछ ईएल
मैं जी रहा था प्रेम
पूर्व स्वीकृत डीएल की तरह
अवकाश के हिस्सों में
प्रेम का विस्तार उगा था
बेहद ऊबड़ खाबड़
वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर
अफ़सोस की शक्ल में
मेरी यादें काउंट हुई
उसके बाद से
मैं एम एल पर था
निरन्तर...!
***
क्यों न आपके खिलाफ
अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए की
तर्ज़ पर एकदिन मुझे मिला था नोटिस
क्यों न आपको विस्मृत कर
आगे बढ़ा जाए
मैं जवाब में व्याख्या पत्र बना ही रहा था कि
एकपक्षीय निर्णय लेते हुए
कर दिया गया मुझे बर्खास्त
खेद इस बात का है
इसके बाद किसी भी न्यायालय ने
नही की स्वीकार
मेरी दया याचिका।
***
मेरे उत्साह पर
रख दिया तुमनें एक दिन
अपने ज्ञान का पेपरवेट
मैं फड़फड़ा नही
बल्कि अस्त व्यस्त घूम रहा था
तुम्हारी दुनिया में
कागज़ की तरह दब गया मैं
तुम खुश थी
खुद के अनुशासन पर।
***
डस्टबिन के तल
पर विश्राम कर रही थी
मेरी मुलाकात की कुछ अर्जियां
खिन्नता से तुमनें
जैसे ही खाली करने का आदेश दिया
सेवक को
मैं समझ गया
असली निर्वाण का
समय आ गया है अब
उन अर्जियों को जला
ताप रहे थे दफ्तर के लोग
मैं धुआं बन उड़ रहा था
तुम्हारे रोशनदान की ओर
मोह की माया इसी को कहते शायद।

© डॉ.अजित

(प्रेम में दफ्तरी हो जाना)

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