Tuesday, January 26, 2016

बतकही

एकदिन मैंने कहा
ऐसा तो नही हो सकता कि
मुझमें सबकुछ बढ़िया ही बढ़िया हो
निसन्देह बहुत कुछ खराब भी होगा
मुझमें सबसे खराब क्या है
सोचकर बताओं जरा
उसनें कहा इसमें सोचना कैसा
तुम्हारी खराबी तो हमेशा से पता है
मैंने कहा क्या है
तुमको सही वक्त पर सही बात कहना नही आता
हमेशा देर कर देते हो
कहने और सुननें में।
***
अचानक एकदिन
मैंने पूछा
सफर जरूरी होता है या मुसाफिर
उसने कहा ये कैसी पहेली
मैंने कहा बताओ तो सही
उसने कहा
दोनों से ज्यादा जरूरी होता है
रास्ता और मंजिल का इन्तजार
इन चारों में अब
खुद को तलाश रहा था मैं।
***
चाय पर बतियातें
एकदिन उसने कहा
चलो एक बात बताओं
हमारे बीच में कितना फांसला है
मैंने कहा
तय नही कर पा रहा हूँ
टेबल,सदी और ग्राम में
उसनें हंसते हुए कहा
कभी करना भी मत
फांसलों की दूरी तय करना
बेवजह थका देता है
और हासिल कुछ नही होता।
***
मैंने एकदिन पूछ लिया
हमारी नजदीकियां कितनी है
अच्छा उस दिन का बदला ले रहे हो
उसनें हंसते हुए कहा
फिर गम्भीर होकर बोली
उतनी जितनी
चाँद और चांदनी में
सूरज और रोशनी में
पानी और नदी में
धड़कन और जिंदगी में।
***
© डॉ.अजित

3 comments:

  1. प्राकृतिक और सहज प्रश्न।

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  2. सार्थक प्रस्तुति ।

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  3. सार्थक प्रस्तुति ।

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