Monday, March 28, 2016

वजह

तुम्हारी निकटता घने दरख्त के जैसी थी
कड़ी धूप में दो पल सुस्ता सकता था जहां
तुम्हारा गुस्सा आवारा बादल की तरह था
जो बरस पड़ता था कहीं भी कभी भी अचानक
तुम्हारा प्यार कैसा था नही जान पाया आजतक
बस ऐसा अनुमान है
तुम्हारा प्यार इकहरा नही था
वो कुछ कुछ हिस्सों में बेहद घना था
कुछ कुछ हिस्सों में बेहद तरल
कुछ आदतें जान पाया बस तुम्हारी
जैसे बहुत बोलकर खामोश हो जाना
नजदीक होकर अजनबी बन जाना
इन्ही आदतों के भरोसें
लांघता रहा उदासी का पहाड़
पीता रहा पीला बसन्त
जीता रहा हरी भरी पतझड़
तुम्हारे साथ कुछ बांटना नही पड़ता था
एक अजीब सी उम्मीद थी तुम
पुकार और इंतजार के मध्य किसी झील के जैसी
उम्मीदें झूठी हो सकती है
मगर तुम एक बेहद जीवंत सच की तरह थी
जिसकी आँखों में आँखें डाल
मैं नही कर सकता था आत्महत्या
जीने की इससे बड़ी वजह
और क्या हो सकती है भला।

© डॉ. अजित

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