Saturday, April 2, 2016

कुछ बातें

कई बरस बाद मिलनें पर उसने पूछा
सुना है कवि हो गए हो तुम
मैंने कहा पता नही
फिर तो पक्का हो गए हो
कवियों को आदत होती है रहस्य रचनें की
मैंने कहा चलों यूं होगा
फिर अचानक मेरी एक कविता पढ़ने लगी मोबाइल पर
एक सांस में पढ़ने के बाद बोली
एक बताओं किसके लिए लिखी ये कविता
मैंने कहा पता नही
तुम्हें कुछ पता भी है फिर?
मैंने कहा बस उतना पता है
जितना तुम्हें पता है कि
कवि हो गया हूँ मैं।
****
जब भी उसे कहनी होती
कोई कड़वी बात
लेती हमेशा सहारा कोट्स का
मैं दो स्माईली बनाता जवाब में
जिसका अर्थ वो यह लगाती
मैं समझ तो गया हूँ
मगर मानूंगा नही
फिर लम्बा चलता मैसेज का अज्ञातवास
इतना अवरोध हमेशा रहा हमारे ज्ञान के मध्य।
***
कुछ मामलों में जिद पर उतर आती वो
मसलन सैंडिल मोची के पास छोड़ना नही
अपने सामनें ही ठीक करवाना है
मैंने कहा इतना अविश्वास क्यों
तब वो कहती मुझे रिपेयर देखना अच्छा लगता है
बरसों बाद उससे बिछड़कर समझ पाया
क्यों अच्छा लगता था उसे रिपेयर देखना
दरअसल वो उसकी जिद नही
तैयारी थी रफू होती जिंदगी को जीने की।
***
उन दिनों मैं कुछ प्रतिशत अवसाद में था
ये बात केवल वो जानती थी मैं नही
इसलिए नही छोड़ा उसने मुझे अकेला
कम दिए उपदेश
स्वीकार की मेरी बेतुकी दार्शनिक टीकाएँ
रूचि से पढ़े पलायन के नोट्स
आज अगर मैं जिन्दा हूँ
इसमें बहुत बड़ा प्रतिशत उसका हाथ है
ये बात भी तभी पता चली
जब छूट गए उसके हाथ।

© डॉ.अजित

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