Monday, April 25, 2016

बदलाव

मुझे तुम्हारी प्रशंसा हासिल हुई
मुझे तुम्हारा गुस्सा हासिल हुआ
मुझे तुम्हारी शिकायतें हासिल हुई
यदा कदा तुम्हारा प्यार भी हासिल हुआ

इस हासिल होने में मैं इसे सम्भालनें का हुनर खो बैठा
मुझे ले बैठा मेरा अति आत्मविश्वास

अब तुम्हारे पास अपने ढ़ेरो सवालो के
अपने जवाब थे
मेरा बोलना भी खुद को बचाने का उपक्रम था
इसलिए सुनता गया आरोपो की फेहरिस्त

दरअसल,
मैं अपने 'होने' के उत्साह में ये बात भूल गया
शब्दों की यात्रा एक रेखीय नही होती है
अभिव्यक्ति की ध्वनियां भी यात्रा करती है वृत्त में
इसलिए मेरे शब्द बन गए हथियार
और मैं एक चालाक शिकारी
जो रोज़ बुनता था शब्दों का ऐसा चक्रव्यूह
जिसमें आखिर फंस ही जाता था कोई वक्त का मारा

मेरी दुनिया बाहर से ऐसी ही दिखती थी
जबकि अंदर पसरा हुआ था विराट एकांत
तुम्हारी हंसी से जला लेता था मोमबत्ती
कुछ अच्छी यादों के सहारे पका लेता था
दाल रोटी
तुम्हारी वजह से मैं भूखा नही मरा
इस बात के लिए कृतज्ञ हूँ

मगर तुमनें कुछ ऐसी चोट भी पहूंचाई
जिसके बिना भी तुम देख सकती थी
मेरा ब्लड ग्रुप

तमाम उपक्रमों के बाद भी
तुम्हारी मान्यताओं में लेशमात्र भी बदलाव न होगा
क्योंकी बदलाव तुमनें मेरी गोद में बैठा दिया है
वो तुम्हें दिन ब दिन बड़ा होता दिखेगा
और एक दिन
इसी बदलाव के पीछे दिखना बन्द हो जाएगा
तुम्हारा प्रिय कवि
जो कभी तुम्हारा प्रिय मित्र भी था।

©डॉ.अजित

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