Thursday, June 23, 2016

निजता

उसनें एकदिन पूछा
तुम्हें कभी निजता के संपादन की जरूरत महसूस हुई?
मैंने कहा हां एकाध बार

उसने पूछा कब?

मैंने कहा जब कोई ख्याल
सार्वजनिक तौर पर कयासों की देहरी पर
बेवजह टंग गया
और बहस मेरी रूचि न बची थी

उसे बचाने के लिए निजता को
सम्पादित करना पड़ा है मुझे

अच्छा ! उसने दिलचस्पी से मेरी तरफ देखा
कैसे किया तुमनें निजता का सम्पादन ?

मैंने कहा फेसबुक की तरह
कुछ विकल्प थे मेरे दिल ओ' दिमाग में

मैं कर सकता था उस ख्याल को सीमित
दुनिया से हटाकर दोस्तों तक
दोस्तों से हटाकर खुद तक
या खुद से हटाकर किसी एक दोस्त तक

एक बार सोचा क्यों न परमानेन्ट डिलीट ही कर दूं
फिर लगा ये तो उस ख्याल के साथ नाइंसाफी होगी
 
मुझे निजता और ख्याल दोनों बचाने थे
इसलिए उसको कर दिया सीमित
मेरे और तुम्हारे बीच

जानता हूँ तुम्हें इसकी खबर नही है
मगर मेरी निजता का एक बड़ा हिस्सा
तुम्हारे साथ यूं ही बेखबर रहता है

तुम्हारे साथ शेयर कर सकता हूँ
मैं बेहद मामूली बातें भी

मसलन
कैसे मुझे नया जूता काट रहा था
जींस पर बेल्ट बांधते समय मुझसे एक हुक छूट गया था
या मुझे बहुत देर से पता चला कि बनियान को कैसे समझा जाता है उल्टा या सीधा
शर्ट इन करने के बाद पहली ही सांस के साथ बेतरतीब ढंग से शर्ट क्यों आती है बाहर
पहली दफा जब एटीएम से पैसे न निकलें और मैसेज आ गया था फोन पर अकांउट डेबिट होने का
कितना घबरा गया था मैं
ये भी बहुत दिन बाद जान पाया कि जिस दोस्त के घर बच्चें होते है
नही जाना होता उनके घर खाली हाथ
प्यार से ज्यादा जरूरी होती है अंकल चिप्स,चॉकलेट और फ्रूटी

ये बातें सुनकर वो खिलखिला कर हंस पड़ी
पहली बार यह महसूस हुआ
ये निर्बाध हंसी
हमारी निजताओं की दोस्ती की हंसी थी
जिसे फिलवक्त किसी सम्पादन की जरूरत नही थी।

©डॉ.अजित

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 26 जून 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. बस भावुक कर गयी आपकी अनगिनत पंक्तियां...

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