Monday, November 21, 2016

प्रार्थना

प्रेम को घुन की तरह
चाट रही थी
अति वैचारिकता
मुद्दें कुतर रहे थे
अंतरंग अव्यक्त प्रेम को

सबसे खराब था
असुविधाओं और असहमति के लिए
दुसरे को दोषी ठहराना
बावजूद इन सबके
वो सबसे ज्यादा खुद से खफा थे

बहस में दुबक गया था प्रेम
स्पष्ट बातें लगने लगी थी
ज्यादा कड़वी
कमजोर हो रहा था
प्रेम का आंतरिक लोकतंत्र

तर्कों से आहत थी सामूहिक सहनशीलता

ईश्वर को खारिज़ कर चुके थे
वो दोनों कब के
नही शेष था कोई प्रार्थना का विकल्प
चमत्कार मौजूद था
सबसे धूमिल आशा के रूप में

जो लिए जातें संकल्प
जो तोड़े जाते संकल्प

उनके लिए नही था कोई प्रार्थनारत
ईश्वर को छोड़कर।
© डॉ.अजित

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