Tuesday, December 20, 2016

उम्मीद

कविताएं
जो सुनानी थी
खत जो दिखाने थे
फोटो जो साथ क्लिक करने थे
छूटे हुए सपनें जो गिनाने थे

जिंदगी के ऐतबार पर
किस्सों को बुनना था
कुछ बिखरे हुए हिस्सों को
हंसते हुए रोज़ चुनना था

काम सब के सब अधूरे रहे
कहे अनकहे ख्याल सब लौट आए
मुझ तक देर सबेर

तुम्हारा पता सही था
खत भी खुले थे
डाकिया भी भरोसे का था

बस तुम अनुपस्थिति थी चित्र से
तुम्हारी अनुपस्थिति की तह बना रख ली है
एक धुंधली सम्भावना की शक्ल में

उम्मीद मनुष्य को बार बार निराश होने के लिए
प्रशिक्षित करती है
मैं उम्मीद की शक्ल में देखता हूँ तुम्हें

निराशा इसलिए सबसे अधिक प्रिय है मुझे।

©डॉ.अजित

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