Tuesday, February 14, 2017

संवाद

प्रेम में अपदस्थ प्रेमी
से जब पूछा मैंने
अपना अनुभव कहो
उसने कहा
मेरा कोई अनुभव अपना नही
प्रेम के बाद कुछ अपना बचता है भला?

मैं इस बात पर हंस पड़ा
उसने कहा तुम प्रेम के अध्येता हो
प्रेमी नही
मैंने कहा आपको कैसे पता
प्रेम में कोई दुसरे की बात पर हंसता है भला?

अब मै थोड़ा उदास हो चुप बैठ गया
अब तुम पात्रता अर्जित कर रहे हो
मुझे सुनने की
मगर मै जो कहूँगा वो मेरा होगा
यह संदिग्ध है
मेरे बारे में पूछना तो उससे पूछना
जिसे मै याद हूँ भूलकर भी

मैंने कहा आप क्या बता सकेंगे फिर?
मैं बता सकूंगा सिर्फ इतना
मैंने जीना चाहा तमाम अभाव और त्रासदी के बीच
मैंने पाना चाहा तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद
मैंने बाँट दिया खुद को कतरा कतरा
मैंने खो दिया उसको लम्हा लम्हा
इस बात पर मुझे पुख़्ता यकीं है
वो साथ है भी और है भी नही।

©डॉ.अजित

2 comments:

  1. बहुत दिन के बाद आपके ब्लॉग पर विचरण करने आया था,
    ज्यादा समझदार नही हूँ, फिर भी दिल कह रहा की बहुत सुंदर लिखा हैं।

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