Friday, March 31, 2017

बोध

लौटते वक्त उसका चेहरा उदास नही था
लौटते वक्त उसके पास कहने के लिए
बहुत कुछ था
लौटते वक़्त उसके पास वक्त का अनुमान नही था
लौटते वक्त उसके पास एक सीधी पगडंडी थी
जिसके रास्ते में कई चौराहे थे

लौटते वक्त मंजिल सामने थी या पीछे
यह बता पाना जरा मुश्किल था
लौटते वक्त आसमान थोड़ा टेढ़ा था
और धरती थोड़ी चकोर
लौटते वक्त हवा कानों के नीचे से बह रही थी
हवा की छुअन में कोई नूतनता न थी

लौटते वक्त उसने घड़ी को देखा
उसे लगा देर हो गई लौटने में
लौटते वक्त घड़ी को देखना
बेहद नीरस घटना थी
इसलिए नही कि देर हो गई थी
बल्कि इसलिए कि
लौटते वक्त उसे समय का बोध हो गया था।

©डॉ.अजित

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