Thursday, August 17, 2017

भरोसे से चूकना

नदी पर बांध
खेती पर ऋण
मजदूरी पर आधार कार्ड
जरूरी हो गया है

मरने के लिए
कोई बड़ी बीमारी जरूरी नही है अब
आप मर सकते है
कुछ छींक आने भर से

लोग उजड़ जाए
किसान मर जाए
मजदूर परदेस को जाए
अब कुछ फर्क नही पड़ता
किसी को

लड़कियाँ लकड़ी की तरह चूल्हे में लगी है
राख बनने पर उन्ही की राख से
पोता जाएगा चूल्हा

देश अब एक बड़ी कंपनी के माफिक है
सीईओ के भरोसे है अब जनकल्याण
लोकतंत्र का इंक्रीमेंट और इंसेंटिव
भरोसे है अम्बानियों और अडानियो के

विकास देश का बिन ब्याहा लड़का है
जो थोड़ा बिगड़ैल भी है
जिधर को निकलता है
लील जाता है मासूम सपनें

विकास का ब्याह पूंजी से कराने की तैयारी है
देश के बड़े बुजुर्गों और मालिकान को
इससे उसके अंदर
दिख रही सुधार की बड़ी गुंजाईश

बच्चें सांस ले रहे है असामान्य गति से
उनका रक्तचाप छूट गया है
नापने के पैमानों से
हम उन्हें देखकर लगाते है अनुमान
कौन कितनी दूर से दौड़कर आया है

बच्चों को गोद नही शोक नसीब है

और आप पूछते है मुझसे
मैं चुप क्यों बैठा हूँ
कुछ करता क्यों नही

मैं उलटा पूछता हूँ आपसे
क्या देश मुझे वो करने देगा
जो करना चाहता हूँ मैं

मैं चाहता हूँ खाल के नगाड़े बनाना
मैं चाहता हूँ इतना शोर
कि नींद में सोते हुए लोग
बहरें हो जाए सोते हुए ही

मेरी चाहतें अब इतनी वीभत्स है
मैं कर सकता हूँ
किसी दिन अपनी ही हत्या
और रख दूंगा इल्ज़ाम
किसी अपने गहरे दोस्त पर

मैं भरोसे से चूक गया हूँ
देश के अंदर
समाज के अंदर
और खुद के अंदर

इसलिए
मुझसे डरना बेहद जरूरी है
क्योंकि मैं खुद से बहुत डरा हुआ हूँ।

©डॉ.अजित

1 comment: