कुछ तारीफें झूठी तो
कुछ सच्ची थी
जो भी थी मगर अच्छी थी
उसकी बातों में
हंसी पिंघलती थी
वो सपनों में अक्सर
आंख खोलकर चलती थी
उसकी हंसी एक पहाड़ी झरना था
जिसके शोर हो सुन-सुन कर
हर पुराना जख्म मेरा भरना था
उसके पास नही कोई शिकायत थी
उसकी खुशबू जैसे कुरान की आयत थी
वो कहती हमेशा खुश रहना
मैं पूछता कैसे
तो कहती देखना शाम को नदी का बहना
फिर यूं हुआ वो खो गई
हमारी कुछ बातें दिन में सो गई
ख्वाब हो या हकीकत
दोनों में उसका किस्सा है
जो साथ जिया था हमने कभी
वो ज़िन्दगी का बेहतरीन हिस्सा है।
©डॉ. अजित
कुछ सच्ची थी
जो भी थी मगर अच्छी थी
उसकी बातों में
हंसी पिंघलती थी
वो सपनों में अक्सर
आंख खोलकर चलती थी
उसकी हंसी एक पहाड़ी झरना था
जिसके शोर हो सुन-सुन कर
हर पुराना जख्म मेरा भरना था
उसके पास नही कोई शिकायत थी
उसकी खुशबू जैसे कुरान की आयत थी
वो कहती हमेशा खुश रहना
मैं पूछता कैसे
तो कहती देखना शाम को नदी का बहना
फिर यूं हुआ वो खो गई
हमारी कुछ बातें दिन में सो गई
ख्वाब हो या हकीकत
दोनों में उसका किस्सा है
जो साथ जिया था हमने कभी
वो ज़िन्दगी का बेहतरीन हिस्सा है।
©डॉ. अजित
सुन्दर।
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