मैनें विपत्ति में
कभी याद नही किया तुम्हें
ना तुम्हें बनाया
अपने विकट एकांत का साथी
इन दोनों के लिए
मैं अकेला ही पर्याप्त था
दुःखों पर तुमसें बात की हो
ऐसा भी नही आता याद
दरअसल, दुःख इतने निजी थे मेरे
उन्हें हर हाल में बचाना था मुझे
प्रेम की छांव से
यदि ऐसा न करता मैं
वो सूख नही पाते असुविधाओं की धूप में
तुम्हें मैं हाथ पकड़ ले गया उस जगह
जहां न एकांत था न दुःख और न कोई विपत्ति
मैंने जोखिम लिया
बात न करने का इन विषयों पर
मेरे पास दूसरे विषय कम थे
मगर मैं बातचीत को हमेशा मोड़ता रहा
भीड़,सुख,योजना और महत्वकांक्षा की तरफ
प्रेम की कल्पना में
यही सहारा था मेरे पास
और इतनी ही थी मेरी बातचीत में गुणवत्ता कि
मैं जितना कह पाया
उससे कई गुना ले गया बचाकर
अपने साथ
इसलिए
नही मिलेगा मेरी बातों से तुम्हें कोई अनुमान
मैं कब खुश था और कब नाखुश
तुम्हें मिलेगी मेरी बातों में एक पुनरावृत्ति
जैसे मैं अटक गया हूँ
एक खास मनःस्थिति में
मेरा मिलना इसलिए संदिग्ध है
मेरा कोई पता नही मिलता आपस में
मेरी बातों को जोड़कर नही बनता एक सारांश
हम दोनों की आश्वस्ति की
एकमात्र बड़ी वजह यही है
जिसे समझा गया है
प्रेम का आत्मिक सन्तोष।
©डॉ. अजित
कभी याद नही किया तुम्हें
ना तुम्हें बनाया
अपने विकट एकांत का साथी
इन दोनों के लिए
मैं अकेला ही पर्याप्त था
दुःखों पर तुमसें बात की हो
ऐसा भी नही आता याद
दरअसल, दुःख इतने निजी थे मेरे
उन्हें हर हाल में बचाना था मुझे
प्रेम की छांव से
यदि ऐसा न करता मैं
वो सूख नही पाते असुविधाओं की धूप में
तुम्हें मैं हाथ पकड़ ले गया उस जगह
जहां न एकांत था न दुःख और न कोई विपत्ति
मैंने जोखिम लिया
बात न करने का इन विषयों पर
मेरे पास दूसरे विषय कम थे
मगर मैं बातचीत को हमेशा मोड़ता रहा
भीड़,सुख,योजना और महत्वकांक्षा की तरफ
प्रेम की कल्पना में
यही सहारा था मेरे पास
और इतनी ही थी मेरी बातचीत में गुणवत्ता कि
मैं जितना कह पाया
उससे कई गुना ले गया बचाकर
अपने साथ
इसलिए
नही मिलेगा मेरी बातों से तुम्हें कोई अनुमान
मैं कब खुश था और कब नाखुश
तुम्हें मिलेगी मेरी बातों में एक पुनरावृत्ति
जैसे मैं अटक गया हूँ
एक खास मनःस्थिति में
मेरा मिलना इसलिए संदिग्ध है
मेरा कोई पता नही मिलता आपस में
मेरी बातों को जोड़कर नही बनता एक सारांश
हम दोनों की आश्वस्ति की
एकमात्र बड़ी वजह यही है
जिसे समझा गया है
प्रेम का आत्मिक सन्तोष।
©डॉ. अजित
बहुत सुन्दर।
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