Sunday, December 24, 2017

प्रशंसा

लिखे हुए में आप
अपने मतलब की चीजें निकाल लेते है
और कर देते है तारीफ़

ऐसे में जो बचा रहा जाता है ऐसा
जो आपके मतलब का नही था
मगर मेरे जरिए जो हुआ प्रकट
वो घेरता है मुझे एकांत में
करता  है प्रश्न पर प्रश्न

मैं थक जाता हूँ देता हुआ जवाब
मगर वो नही सुनता मेरी कोई सफाई
और  कोसता हुआ मुझे
हो जाता है नेपथ्य में विलीन

जितना लिखता हूँ मैं
वो सब उन्हीं उपेक्षित शब्दों और भावों के
अपराध से मुक्ति होती है एक कोशिश
मगर हर बार बच जाता है ऐसा कुछ
जिसे नही मिलती आपकी तारीफ़
इसलिए कभी खत्म नही होता
मेरे लिखने का क्रम

आप जिसे कहते है बहुत अच्छा
वो मैं पढ़ नही पाता हूँ
क्योंकि
मैं लगा रहता हूँ उनकी मनुहार में
जो अच्छा था
मगर खो गया अधिक अच्छे की भीड़ में

मेरी प्रशंसा की तृष्णा इसलिए नही होती शांत
क्योंकि कोई प्रशंसा नही आती मुझ तक अकेले.

©डॉ. अजित 

Monday, December 11, 2017

कौशल

कवि की प्रार्थना
होती है निस्तेज
इसलिए
कवि देता है केवल श्राप
कविता कवि का श्राप है
जिसका भोग्याकाल होता है
सबके लिए अलग-अलग
कवि से वरदान की मत कीजिए कभी कामना
वो सौंप देगा अपनी कविता वरदान की शक्ल में
और आप नही कर पाएंगे यह तय
किस तरह से बरती जाए यह कविता
कवि से मत करना प्रेम
कवि से मत करना घृणा
कवि को देखना कभी प्रेम से
कभी घृणा से एक साथ
कवि ईश्वर का दूत नही है
वो मनुष्यता का भेदिया है
जो भेजता है रोज रपट
शत्रु मन को
अचानक आए आक्रमण
कवि और कविता का षड्यंत्र कहे जा सकते है
जिन्हें बाद में समझा गया खुद से प्रेम
कवि से कभी मत मिलना
कवि से मिले तो
हो जाएगा मुश्किल
खुद से मिलना
कविता से मिलना
मन के मौसम को छोड़कर
वो थाम लेगी हाथ
हर मुश्किल वक्त में
कविता को निकाल लेना कवि के भंवर से
बतौर मनुष्य यही होगा तुम्हारा बड़ा निजी कौशल.
@ डॉ. अजित

Tuesday, December 5, 2017

एकांत की कविताएँ

एकांत की कविताएँ
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दो बिन्दुओं के संधिस्थल
जैसा सूक्ष्म होता है
वास्तविक एकांत
जहाँ पसरी होती है
एक आत्मिक शांति
ये होता है बेहद संक्षेप
इसलिए कोई भी विस्तार
एकांत के साथ होती है
एक नियोजित छेड़छाड़
एकांत को बचाने के लिए
अक्सर जरूरी होता है
एक जगह रुके रहना.
**
खुद से बात करता मनुष्य
प्रतीत होता है आधा पागल
खुद से बात करने के लिए
जरूरी है आधा पागल होना
और दुनिया से बात करने के लिए
पूरा पागल.
**
एकांत में भी
रहता है कोई साथ सदा
एकांत की यही होती है ख़ूबसूरती
भले कोई रहे साथ भी
नही होती इच्छा
उससे बतियाने की
इस तरह से एकांत हुआ
दोहरा एकांत.
**
अकेलापन पूछता है सवाल
एकांत देता है जवाब
दोनों को देखकर
मुस्कुराता है मन
तीनों को समझकर
मनुष्य करता है विश्वास
इसलिए भी नही होता है स्वीकार
छल पर कोई स्पष्टीकरण
**
उसने पूछा
क्या तुम्हारे एकांत में दाखिल हो सकती हूँ मैं
मैंने कहा-नही
फिर वो दाखिल हुई
और मुझे बोध न हुआ
एकांत में दाखिल होने की अनुमति माँगना
एकांत का अपमान है
और बिन पूछे दाखिल होना एक कौशल.


© डॉ. अजित