कवि की प्रार्थना
होती है निस्तेज
इसलिए
कवि देता है केवल श्राप
होती है निस्तेज
इसलिए
कवि देता है केवल श्राप
कविता कवि का श्राप है
जिसका भोग्याकाल होता है
सबके लिए अलग-अलग
जिसका भोग्याकाल होता है
सबके लिए अलग-अलग
कवि से वरदान की मत कीजिए कभी कामना
वो सौंप देगा अपनी कविता वरदान की शक्ल में
वो सौंप देगा अपनी कविता वरदान की शक्ल में
और आप नही कर पाएंगे यह तय
किस तरह से बरती जाए यह कविता
किस तरह से बरती जाए यह कविता
कवि से मत करना प्रेम
कवि से मत करना घृणा
कवि से मत करना घृणा
कवि को देखना कभी प्रेम से
कभी घृणा से एक साथ
कभी घृणा से एक साथ
कवि ईश्वर का दूत नही है
वो मनुष्यता का भेदिया है
जो भेजता है रोज रपट
शत्रु मन को
वो मनुष्यता का भेदिया है
जो भेजता है रोज रपट
शत्रु मन को
अचानक आए आक्रमण
कवि और कविता का षड्यंत्र कहे जा सकते है
जिन्हें बाद में समझा गया खुद से प्रेम
कवि और कविता का षड्यंत्र कहे जा सकते है
जिन्हें बाद में समझा गया खुद से प्रेम
कवि से कभी मत मिलना
कवि से मिले तो
हो जाएगा मुश्किल
खुद से मिलना
कवि से मिले तो
हो जाएगा मुश्किल
खुद से मिलना
कविता से मिलना
मन के मौसम को छोड़कर
वो थाम लेगी हाथ
हर मुश्किल वक्त में
मन के मौसम को छोड़कर
वो थाम लेगी हाथ
हर मुश्किल वक्त में
कविता को निकाल लेना कवि के भंवर से
बतौर मनुष्य यही होगा तुम्हारा बड़ा निजी कौशल.
@ डॉ. अजित
बतौर मनुष्य यही होगा तुम्हारा बड़ा निजी कौशल.
@ डॉ. अजित
सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर व कोमल भाव रचना का
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteGazab likha hai sir
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