स्त्री
ने नींद मांगी
ईश्वर
मुस्कुराया
और
पुरुष की तरफ देखा
जैसे
ईश्वर खुद पुरुष पर आश्रित हो
नींद
के मामलें में
स्त्री
ने साथ माँगा
पुरुष
ने इसे हाथ समझा
उसने
पकड़ लिया कसकर
वो
खुद फिसलकर गिरा
और
गिरा दिया स्त्री को भी अपने साथ
इस
तरह से गिरना बनी एक दैवीय घटना
इस
बात के लिए
ईश्वर
को नही दिया गया कोई दोष
स्त्री
जरुर समझी जाती रही कमजोरी का प्रतीक
स्त्री
मांगने में करती रही संकोच
वो
देती रही नि:संकोच
ईश्वर
ने इस बात पर नही थपथपायी उसकी पीठ
वो
व्यस्त रहा पुरुष के पलायन पढ़ने में
जब
थक कर नींद न मिली
चाह
कर साथ न मिला
तब
भी ईश्वर पर संदेह नही किया एक स्त्री ने
तमाम
उपेक्षाओं के बावजूद
ईश्वर
से सर्वाधिक संवाद रहा स्त्री का
प्रार्थनाओं
की शक्ल में
दरअसल
ईश्वर
और पुरुष दोनों इस बात पर सहमत थे
स्त्री
को नींद की जरूरत नही है
इसलिए
मुद्दत से
जाग
रही है स्त्री
और
बेफिक्र होकर सो रहा ईश्वर
पुरुष
के ठीक बगल में.
©डॉ.
अजित
वाह
ReplyDeleteआज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १९५० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, बजट, बेचैन आत्मा और १९५० वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बढ़िया
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