बेजी
जैसन की किताब ‘पप्पा’ को पढ़ते हुए-
--
पुत्र
के लिए पिता
पुत्री
के लिए पिता से भिन्न होता है
पुत्री
पिता की व्याख्या कर सकती है
पुत्र
केवल जानता है पिता का व्याकरण
दिवंगत
पिता की स्मृतियाँ
दोनों
के लिए होती है एकदम भिन्न
पुत्र
याद करता है अपने अभाव
पुत्री
करती है याद
पिता
के समय की सम्पन्नता
पिता
जब होते है
जीवन
से अनुपस्थित
पुत्र
और पुत्री दोनों
उसके
बाद आते है
पिता
की तरह पेश
इस तरह
पिता बने रहते है
जीवन
में सदा अबूझ
जब
मेरे पिता नही रहे
मेरी
बहन का मुझ पर
अविश्वास
हो गया गहरा
उसने
माना पिता की जगह
कोई
नही ले सकता
और मैं
तो बिलकुल भी नही
इस
दौरान मैं देख पाया
बहन का
पिता हो जाना
पुत्र
के तौर पर मेरे पास है जो स्मृतियाँ
अवज्ञा
उनकी केंद्रीय विषय वस्तु है
पुत्री
के तौर पर जो मेरी बहन के पास है स्मृतियाँ
उसमें
थोड़ा गुस्सा और अधिक प्यार है
पिता
इसी तरह विभाजित है
हम भाई
बहन के मध्य
पिता
के जाने पर
मेरे
अंदर का पिता
अब
मेरा पिता बना बैठा है
जो रोज़
देखता है मेरी चाल-ढ़ाल
और
होता है थोड़ा खिन्न
जब
अपनी बहन से पूछा मैंने
तुम्हें
किस तरह आतें है पिता याद
उसनें
इस बात का नही दिया कोई जवाब
वो
मेरे सामने नही करती कभी
पिता
का कोई जिक्र
ये
पिता की सबसे सघन याद थी
जो
मैंने की महसूस
पिता
के चले जाने के बाद.
© डॉ. अजित
बहुत सूक्ष्म विश्लेषण पिता, पुत्र और पुत्री के संबंधों और मनोभावों का। सादर -
ReplyDelete