मैं किसी का इतना प्रिय न हो सका
कि मेरे बिना उसे रहा न जाए
मैं किसी का इतना अप्रिय भी न हो सका
कि कोई मुझे देखते ही अपना दिन खराब समझ ले
मैं हमेशा एक युक्तियुक्त दूरी पर रहा
इसलिए मुझे लेकर है
सबके अपने-अपने अनुमान है
लोगों ने निज सुविधाओं से मुझे देखा
किसी के नजदीक तो किसी से दूर
अगर मैं किसी का इतना प्रिय होता कि
उसे मेरे बिना जीना लगता अपरिहार्य
तो मैं उससे करता बात
उसके जीवन की अप्रियताओं पर
जिन्हें मैं अप्रिय नही लगा
उन्हें प्रिय रहा हूँ ऐसा भी नही है
उनकी अप्रियताओं पर मुझे रहा सदा सन्देह
इसलिए मैं बता सकता हूँ
प्रेम का मध्यमार्ग
जानते हुए यह बात कि
नही होता प्रेम में कोई मध्य मार्ग।
© डॉ. अजित
कि मेरे बिना उसे रहा न जाए
मैं किसी का इतना अप्रिय भी न हो सका
कि कोई मुझे देखते ही अपना दिन खराब समझ ले
मैं हमेशा एक युक्तियुक्त दूरी पर रहा
इसलिए मुझे लेकर है
सबके अपने-अपने अनुमान है
लोगों ने निज सुविधाओं से मुझे देखा
किसी के नजदीक तो किसी से दूर
अगर मैं किसी का इतना प्रिय होता कि
उसे मेरे बिना जीना लगता अपरिहार्य
तो मैं उससे करता बात
उसके जीवन की अप्रियताओं पर
जिन्हें मैं अप्रिय नही लगा
उन्हें प्रिय रहा हूँ ऐसा भी नही है
उनकी अप्रियताओं पर मुझे रहा सदा सन्देह
इसलिए मैं बता सकता हूँ
प्रेम का मध्यमार्ग
जानते हुए यह बात कि
नही होता प्रेम में कोई मध्य मार्ग।
© डॉ. अजित
सच है
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