Tuesday, September 24, 2019

आदत


मैंने तुम्हें
मेरी आदत नही होने दी
जब-जब ऐसा लगा
तुम राग से हो रही हो अधीर
हंसकर पूछती हो प्रश्न अति-गम्भीर
मैं सतर्क हो गया
ठीक उसी वक्त
बदल दिया बातचीत का विषय
और हमारे मध्य
खींच दी एक महीन लकीर

जानता हूँ
तुम्हें मेरा उपरोक्त दावा
एकदम झूठा लगेगा
मगर यह उतना भी झूठा नही है

मैं जानता था यह बात
आदत बहुत धीरे-धीरे लगती है
मगर एक बार अगर लग जाए यह
फिर मुश्किलें होती हैं बहुत
मन हो जाता चातक
और बुद्धि भाग्यवादी  

ऐसा नही है कि
मैं हमेशा था चालाक
अलबत्ता तुम्हारे सामने
चल भी नही पाती
मेरी कोई चालाकी

बस, मैंने बचाया तुम्हें
आदत होने के उपक्रम से
क्योंकि
अगर किसी भी आदत नही होनी चाहिए
चाहे वो दोस्त हो या प्रेमी

तुमसे मिलनें से पहले
मैं जानता था यह बात
किसी की आदत होना
उसे खोना है

इसलिए मैंने बचाया
तुम्हें और खुद को
उस खोने से
हमेशा के लिए.
© डॉ. अजित

Monday, September 23, 2019

स्त्री मन की कविताएँ


स्त्री बड़ी देर से करती है
किसी का तिरस्कार
वो ओढ़ लेती है
प्यार को बचाने की
सारी जिम्मेदारी खुद पर
वो करती रहती है रफू
मन को देकर तसल्ली
मगर
जब कोई होता है
उसके जीवन से
उसकी इच्छा से अनुपस्थित
फिर तिरस्कार बन जाता है
एक बेहद छोटा शब्द.
**
स्त्री प्रेम न करे
ऐसा संभव नही
जरूरी नही वो प्रेम
किसी पुरुष से किया जाए
स्त्री प्रेम करने के लिए बनी है
दुनिया में बचा हुआ प्रेम
स्त्रियों के कारण
पुरुषों के पास प्रेम की व्याख्याएं है
और स्त्रियों के पास
प्रेम की मूल पांडुलिपि.
**
स्त्री और पुरुष
दो स्वतंत्र सत्ताएं है
दरअसल
जिन्हें समानांतर कह कर
हम एक सूत्र में बाँधने का
करते है प्रयास
यह एक मानवीय भूल है
दुनिया के तमाम बिगड़े हुए रिश्तें
इसी भूल का हैं परिणाम.
**
घृणा और प्रेम
किसी से भी किया जा सकता है
मगर
किसी से एक साथ यह कर सकती
केवल स्त्री.
**
थकी हुई स्त्री
और हारा हुआ पुरुष
दिखतें है एक जैसे
मगर जानबूझकर वो
कम पड़ते है
एकदूसरे के सामने
इसलिए भी रहते हैं दोनों
एकदूसरे से अजनबी.

© डॉ. अजित

Thursday, September 19, 2019

बीमारी

बीमारी अकेले आती है
एकदम दबे पांव

लेती है घर का जायज़ा
एकदम चुपचाप

चुनती है अपने ठिकाने
सिलसिलेवार

विजय-पराजय के भाव से
औषधियों से
करती है रोज़ खुलकर सामना

सदकामनाएं खोजती है
अपने बिछड़े हुए भाई बन्धु
जाती है दोस्तों के सपनों में
भेष बदलकर
ताकि उन्हें बता सके हमारा हालचाल
जो ईश्वर से भी पहले
हर बीमारी में आते हैं हमें याद

बीमार आदमी दवाई के साथ
हिचकियों को भी रखता है हिसाब

बीमारी देर से जाती है
और जाते-जाते छोड़ जाती
अपने निशान

ताकि मनुष्य को याद रहे
खुद का मनुष्य होना
और ईश्वर को याद रहे
मनुष्य का दृष्टा होना।

©डॉ. अजित

Wednesday, September 18, 2019

अपना खेत


खेत खलिहान पर जाती हर पगडंडी
की स्मृति इतनी मजबूत है
वह बता सकती है
मेरे पूर्वजों की जूती का नाप  
उनकी फटी बिवाई से झरी हुई  
मिट्टी की मात्रा

खेत की हवा और पानी
दोनों जानती है
पीढ़ियों तक की देहगंध और प्यास
उन्हें नही जरूरत किसी विज्ञान की
मुझे पहचानने के लिए

खेत मुझे दूर से आता देख
खुश हो सकता है
फसलों को दे सकता है आदेश
मुझे आता देख झूमने के लिए
वो बाट जोह सकता है मेरी
कई पीढ़ियों तक

वो हो सकता है चिंतित
मेरे न आने पर
वो भेज सकता है मेरे पास
अपनी शुभकामनाएं शहर तक

वो आ सकता है अपनी इच्छा से कभी भी
भोर के सपनें में किसी पुराने दोस्त की शक्ल लेकर उधार

खेत की जिस मिट्टी में
उगता है अन्न
वहीं उगता है मेरा एक दूसरा मन
जो सबकी खबर रखता है
मगर खुद की खबर नही देता है किसी को

जानने के लिए उसका हाल चाल
मुझे एक खेत चाहिए बस
और
जरूरी नही वो मेरा अपना खेत हो.

© डॉ. अजित  

Tuesday, September 17, 2019

वेग

कभी नदियों के वेग से
तराशे हुए पत्थर देखना
कितने स्वच्छ निर्मल
और पुनीत नजर आएंगे

निरंतर चोट से बने कटाव
गहरे मगर साफ होते है

चोट देना हर बार
हिंसा नही होती हर बार
किसी के पास जाकर
बार-बार वापस लौटना

मांग करता है
एक खास किस्म की तैयारी की

दरअसल यह
एक अभ्यास है
उस भविष्य का
जब पत्थर रह जाता है अकेला
और वेग को चुनना पड़ता है
एक नया पत्थर
सतत चोट के लिए

यह बात प्रेम पर भी
लागू की जा सकती है

बशर्ते पत्थर और नदी
का नाम बताने का
आग्रह न किया जाए।

© डॉ. अजित