Monday, September 23, 2019

स्त्री मन की कविताएँ


स्त्री बड़ी देर से करती है
किसी का तिरस्कार
वो ओढ़ लेती है
प्यार को बचाने की
सारी जिम्मेदारी खुद पर
वो करती रहती है रफू
मन को देकर तसल्ली
मगर
जब कोई होता है
उसके जीवन से
उसकी इच्छा से अनुपस्थित
फिर तिरस्कार बन जाता है
एक बेहद छोटा शब्द.
**
स्त्री प्रेम न करे
ऐसा संभव नही
जरूरी नही वो प्रेम
किसी पुरुष से किया जाए
स्त्री प्रेम करने के लिए बनी है
दुनिया में बचा हुआ प्रेम
स्त्रियों के कारण
पुरुषों के पास प्रेम की व्याख्याएं है
और स्त्रियों के पास
प्रेम की मूल पांडुलिपि.
**
स्त्री और पुरुष
दो स्वतंत्र सत्ताएं है
दरअसल
जिन्हें समानांतर कह कर
हम एक सूत्र में बाँधने का
करते है प्रयास
यह एक मानवीय भूल है
दुनिया के तमाम बिगड़े हुए रिश्तें
इसी भूल का हैं परिणाम.
**
घृणा और प्रेम
किसी से भी किया जा सकता है
मगर
किसी से एक साथ यह कर सकती
केवल स्त्री.
**
थकी हुई स्त्री
और हारा हुआ पुरुष
दिखतें है एक जैसे
मगर जानबूझकर वो
कम पड़ते है
एकदूसरे के सामने
इसलिए भी रहते हैं दोनों
एकदूसरे से अजनबी.

© डॉ. अजित

2 comments:

  1. बेहद सार्थक चिंतन..सराहनीय सृजन।

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