Tuesday, April 7, 2020

प्रतीक

अभ्यास में चन्द्रबिन्दु सा विस्मृत हूँ
अनाभ्यास में मात्रा की त्रुटि हूँ
व्याकरण में वाक्य दोष हूँ

प्रेम में,लुप्त हुई लिपि का मध्य का एक अक्षर हूँ
मैत्री में विस्मयबोधक अवयव हूँ
लोक में भाषा की दासता से मुक्त एक गीत हूँ

इतना परिचय देना उल्लेखनीय चीज़ नहीं है
दरअसल
परिचय और अपरिचय के मध्य खड़ा एक त्रिकोण हूँ
जिसे शुभता का प्रतीक समझ लिया गया है

शास्त्र का स्वास्तिक इस बात पर नाराज़ है।

©डॉ. अजित

5 comments:


  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक कीचर्चा गुरुवार(०९-०४-२०२०) को 'क्या वतन से रिश्ता कुछ भी नहीं ?'( चर्चा अंक-३६६६) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. सुन्दर प्रस्तुति

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  3. बैसाख में स्वागत है भाई

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  4. वाह भाई साब मान गये.
    गजब की रचना.
    नयी रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 

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