बातें बहुत कहना चाहता हूं, कहता भी हूं, पर हमेशा अधूरी रह जाती हैं, सोचता हूं, कहूंगा...शेष फिर...
मेरी मूर्खताओं का
कोई अन्त नहीं था
वे इतनी सुव्यवस्थित थी
कि उन्हें देख
सन्देह होने लगता था
अपने अनुभव और ज्ञान पर
मूर्खताओं को
पहचाने के लिए
एक काम करना होता था बस मुझे
नियमित मूर्खताएं करना।
©डॉ. अजित
एक लम्बे अन्तराल के पश्चात। सुन्दर।
मूर्खताओं में भी सीख सुहानी छुपी रहती है ऐसा कोई नहीं जो कभी मूर्खताएं करे ही करें
सभी करते मूर्खताएं । लेकिन सुव्यवस्थित होतीं या नहीं ये नहीं पता ।
बेहतरीन
बहुत खूब ..मूर्ख बनना होता है बस ... क्या बात जी, क्या बात जी ...
👌🙂
एक लम्बे अन्तराल के पश्चात। सुन्दर।
ReplyDeleteमूर्खताओं में भी सीख सुहानी छुपी रहती है
ReplyDeleteऐसा कोई नहीं जो कभी मूर्खताएं करे ही करें
सभी करते मूर्खताएं । लेकिन सुव्यवस्थित होतीं या नहीं ये नहीं पता ।
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteबहुत खूब ..
ReplyDeleteमूर्ख बनना होता है बस ... क्या बात जी, क्या बात जी ...
👌🙂
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