अपमानों की स्मृतियों को
कागज के जहाज की तरह
फूंक मार उड़ाया मैंने कई बार
हालांकि ये जतन बहुत कारगर तो न था
अपमान की स्मृतियाँ लोटकर आती रही मुझ तक
हर बार
ऐसी स्मृतियों को नाव बना
चलाया मैंने बेमौसमी बारिश में कुछ बार
मगर उनकी सतह इस कदर खुरदरी थी
कि उसको डूबते देखना
एक नये किस्म का दुःख था मेरे लिए
कभी हँसी, तो कभी रंज,तो कभी मलाल की शक्ल में
मैं अपमान की स्मृतियों को खुद से दूर रखने का
प्रयास करता रहा अक्सर
मगर
अपमान की स्मृतियों को
मुझसे बना रहा एक खास किस्म का लगाव
वे आती रही हमेशा याद
कभी रात में तो कभी दोपहर में
ऐसा भी नहीं है कि
मुझे अक्सर अपमानित होना पड़ा हो
बल्कि मैं बहुधा रहा स्वीकृत
मगर बारहा मुझे अपमानित होना पड़ा अकारण
यह एक विडम्बना जरुर कही जा सकती है.
अपमान की स्मृतियों की एक ख़ास बात थी
वे मुझे याद आती थी
सबसे सुखद दिनों में
वे देती थी दस्तक
उन्मुक्त हँसी के ठीक बाद
अपमान की स्मृति तलाश लेती मुझे
जब मैं माफ करने को होता किसी को
हालांकि मैंने बावजूद इनके माफ करना बंद नहीं किया
और इस बात के लिए
अपमान की स्मृतियों ने कभी माफ नहीं किया मुझे.
उन्हें लगा कैसा ढीट आदमी है ये भी
अपमान के लिए समय को देता है दोष
और व्यक्तियों को करता है माफ़.
इस बात के लिए समय ने लड़ी मुझसे
अलग किस्म की लड़ाई
अपमान की स्मृतियों पर कविता लिखने का
कर रहा हूँ यह एक नया जतन
शायद मिल जाए इस बहाने
सब अपमानजनक स्मृतियों को मोक्ष.
© डॉ. अजित
आये भी तो बहुत दिनों के बाद :) सुन्दर
ReplyDelete@ सुशील कुमार जोशी सर, आप नियमित मेरा ब्लॉग पढ़ते हैं. आपका तहे दिल से शुक्रिया.
ReplyDeleteवाह.बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत सूंदर लिखा है आपने। इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद। Zee Talwara
ReplyDeleteआप बहुत अच्छा लिखते हैं अभिव्यक्ति गजब की है कोशिश करता हूँ हर अच्छे लेखक के लिखे तक पहुंच सकूं|
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