Friday, June 10, 2022

मोक्ष

 प्रेम में उसका चुनाव

विकल्पहीनता का परिणाम था

उसे पात्र कहा गया

मगर बरकरार रही सुपात्र की चाह


वो एक अच्छा विकल्प था

मगर विकल्प कभी अच्छा नहीं होता

यह बात जानते थे दोनों


उसने कभी बताया नहीं

मगर वो चाहती थी उसका 

एक नूतन संस्करण 


निःसन्देह यह कोई खराब चाह भी न थी

मगर कामनाएं अतृप्त रहती है प्राय: प्रेम में 


वे दोनों टकरा गए थे जिस महूर्त पर 

नहीं मिलता था उसका विवरण 

किसी मार्तंड पंचांग में


उनका टकराना 

एक दुर्लभ खगोलीय घटना न थी

जिसके लगाया जा सके 

भविष्य का अनुमान


मगर वे विश्लेषण से मुक्त होकर

रोज करते थे कुछ वायदे खुद से 

नहीं बताते थे एक दूसरे से कुछ बात 


प्रेम में संकल्प बनते बनते रह गए था वो 

विकल्प होने की यह सबसे बड़ी बाधा थी 


विकल्प और संकल्प के मध्य

सब कुछ बुरा ही बुरा नहीं था 

उनकी बातों का यदि किया जाए भाष्य 

तो दीक्षित हो सकते थे कई प्रेमी युगल एकसाथ


उनकी कामनाओं का नहीं किया जा सकता था अनुवाद 

वे लिपि और भाषा की सीमाओं कर गए थे उल्लंघन 


उनके पास  नहीं थी कोई योजना

नहीं थे भविष्य के साझा स्वप्न

वे कहते रहे दिन को दिन

और रात को रात 


प्रेम में किसी का विकल्प होना 

अधूरे संकल्प के जैसा था कुछ-कुछ 


जो मरते वक्त आता था याद

और देह छोड़ देती थी मोक्ष की कामना


उस प्रेम का यही था एकमात्र मोक्ष।


©डॉ. अजित


7 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना रविवार १२ जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. विकल्प और संकल्प के बीच
    सब कुछ बुरा बुरा नहीं था ।

    गहन भाव , गहन प्रस्तुति ।

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  3. विकल्प का दृष्टिकोण बङा नया सा लगा ।
    सुंदर समीकरण संकल्प बद्ध कविता का ।

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  4. बहुत गूढ़ भाव उकेरी रचना।
    अप्रतिम।

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  5. उकेरती पढ़ें कृपया।

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  6. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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