Sunday, June 19, 2022

कुलदेवता

 पूर्व प्रेमियों से

कोई ईर्ष्या नहीं होती थी उसे


कभी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं महसूसता था वो 

किसी अन्य के पुरुषार्थ बखान पर 


उसकी नहीं थी अतीत में

लेशमात्र भी दिलचस्पी


वो साक्षी भाव का श्रोता था 

प्यार,मनुहार और तकरार के किस्सों का


वह प्रेमी नहीं था

वह दोस्त भी नहीं था शायद


दोस्त और प्रेम के मध्य 

किसी स्थान का कुलदेवता था वो


जहां रस्मन रुका जाता

दिक्कतें बताई जाती

पश्चाताप किया जाता

और एक उम्मीद बंधती थी कि


एक दिन सब ठीक हो जाएगा


उसके हिस्से आया था

सुनना, और वो सुनाना 

जो सुना नहीं जाता प्राय:


अपात्र,कुपात्र,सुपात्र के अलावा 

उसका था अपना एक मौलिक पात्र 


जिसमें प्रेम का करके छायादान 

प्रेमी और दोस्त पाते थे राहत 


दुश्मन करते थे उस पर रश्क़ 


देवता की शक्ल में 

वो था इतना मामूली कि 

उसे देख उसके ऐसा होने पर होता था सन्देह


और वो कहता था एक ही बात

ऐसी बात नहीं है


'दरअसल तुम समझे नहीं'


©डॉ. अजित


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