'कृपया'
एक निवेदन है
और आग्रह भी
'कृपा' जिसमें
किसी एक का परिणाम बन जाती है।
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अपनी छाया के अंदर
कूदकर देखता हूँ
तो पाता हूँ
वहां वह कठोरता मौजूद है
जो असल जीवन से
अनुपस्थित है।
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सपने यदि ऐच्छिक होते तो
कल्पना निस्तेज चीज बन जाती।
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मैंने खुद को प्रभावित
करने की चेष्टा में
खुद का सबसे अधिक नुकसान किया।
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हमें देखने के लिए
आँख की न्यूनतम जरूरत थी
मगर
हम आँख से आगे कभी न देख पाए।
©डॉ. अजित
सारगर्भित अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह
ReplyDeleteबोधयुक्त, एक से बढ़कर एक क्षणिकाएँ
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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