Monday, October 7, 2024

कृपया

 'कृपया'

एक निवेदन है

और आग्रह भी

'कृपा' जिसमें 

किसी एक का परिणाम बन जाती है।


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अपनी छाया के अंदर

कूदकर देखता हूँ 

तो पाता हूँ

वहां वह कठोरता मौजूद है

जो असल जीवन से 

अनुपस्थित है।

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सपने यदि ऐच्छिक होते तो

कल्पना निस्तेज चीज बन जाती।


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मैंने खुद को प्रभावित

करने की चेष्टा में

खुद का सबसे अधिक नुकसान किया।


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हमें देखने के लिए

आँख की न्यूनतम जरूरत थी

मगर

हम आँख से आगे कभी न देख पाए।


©डॉ. अजित 

5 comments:

  1. सारगर्भित अभिव्यक्ति।
    सादर।
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    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. बोधयुक्त, एक से बढ़कर एक क्षणिकाएँ

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