लम्हा-लम्हा बिखरा हूं खुद का साथ निभाने मे
एक उम्र गुजर गयी ऐब को हुनर बनाने मे
वो वादा करके भी मुकर गया अफसाने मे
मै निभा कर भी तन्हा हूं भरे जमाने मे
ख्वाबों को गिरवी रख आया था जिसके पास
वो साफ मना कर रहा उन्हे लौटाने मे
अपनी बेबसी वो इशारो मे कह गया
समझ न सका दिल ज़ज्बात पुरानो मे
महफिल सजती है तो दिल जलता है
रोशनी नही अब आती इन रोशनदानों मे
साथ न दो कोई बात नही वक्त की मजबूरी है
बहुत बुरा लगता है अपना जब कोई बात करे तानो में...।
डा.अजीत
अति सुन्दर !!! बहुत अच्छे ढंग से लिखी सुन्दर रचना !!!
ReplyDeleteअथाह...
धन्यवाद !!!
क्या बात है बहुत ही अच्छी पंक्तिया लिखी है .....
ReplyDeleteएक बार पढ़कर अपनी राय दे :-
(आप कभी सोचा है कि यंत्र क्या होता है ..... ?)
http://oshotheone.blogspot.com/2010/09/blog-post_13.html
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...सही दिशा दिखाती रचना ..
ReplyDeletevery original, true and awesome line...
ReplyDeletebahut hee anokha andaaz haigahraeeliye adbhut lekhan.
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