रास्ते आपस मे मिल गये होते
रहबर वादे से अपने न मुकर गये होते
लबो की तौहीन बनने से बेहतर था
किसी के चश्मेतर मे उतर गये होते
मंजिल बहुत करीब होती ख्वाबो की
मुसाफिर सफर मे बदल गये होते
शर्त बडी अजीब लगाई थी उसने
वरना खोने से पहले संवर गये होते
मिलना-बिछडना उसका दस्तुर था
हम किसके लिए ठहर गये होते
दायरे मे उडना गर सीख लेता
पर पंछी के कतर गये होते
मयकदे मे संभलना मुश्किल था
महफिल से अगर बच गये होते...।
डा.अजीत
बेहद खूबसूरत रचना दिल को छू गयी।
ReplyDelete'dayre me udna gar seekh leta
ReplyDeletepar panchhi ke katar gaye hote'
bahut achchh laga.
दायरे मे उडना गर सीख लेता
ReplyDeleteपर पंछी के कतर गये होते ..
बहुत खूब ...अच्छी अभिव्यक्ति
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteहर शेर सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...वाह !!!
दायरे में उड़ना गर सीख लेता
ReplyDeleteपर पंछी के कतर गए होते
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.
दायरे मे उडना गर सीख लेता
ReplyDeleteपर पंछी के कतर गये होते ..
हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ .... सुंदर रचना