दोस्ती भटकती रही महफिल में
दोस्त समझदार हो गये
बिकने के लिए जब वो निकला
बेचने वाले खरीददार हो गये
एक बार मिला तो ऐसे मिला
तन्हा भी उसके तलबगार हो गये
जिसने रोशन की थी शमा
वो हवाओं के पैरोकार हो गये
सफर मे जो फकीर मिले थें
वो अब ज़मीदार हो गये
हवेली गिरवी रख कर
लोग अब किरायेदार हो गये
उसने मशविरा किया गैर से
तब महसूस हुआ बेकार हो गये
फैसला उसका था दिल मेरा
फिर दोनो मयख्वार हो गये...।
डा.अजीत